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Monday, September 8, 2014

यह कैसी खामोशी





हवाएं गुमसुम क्यों हैं

रास्ते चुपचुप क्यों हैं  

धूल निस्पंद क्यों है

पत्थर पिघले क्यों हैं

पेड़ खामोश क्यों हैं

पत्ते नीरव क्यों हैं

कलियाँ मुरझाई क्यों हैं

फूल अनमने क्यों हैं

काँटे कुंद क्यों हैं 

जड़ें उखड़ी क्यों हैं

रिश्ते संकुचित क्यों हैं

शब्द कुंठित क्यों हैं

भाव छूटे क्यों हैं

बंधन टूटे क्यों हैं

हार बिखरे क्यों हैं

दीप बुझते क्यों हैं

सिलसिले टूटे क्यों हैं  

देवता रूठे क्यों है ?

तमाम सारे प्रश्न हैं

ढेर सारे संशय हैं

अनगिनत भ्रम हैं

असंख्य जिज्ञासायें हैं

पर न जाने क्यों

हर दिशा चुप है

हर शै मौन है

हर आवाज़ खामोश है

हर जवाब 

वक्त की पर्तों के नीचे 

गहरे

कहीं बहुत गहरे

दफ़न है !

न जाने क्यों ?   


साधना वैद




 

     

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