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Sunday, July 19, 2015

जीने की वजह

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जीने की वजह

पहले थीं कई

अब जैसे कोई नहीं !

बगिया के रंगीन फूल,

और उनकी मखमली मुलायम पाँखुरियाँ !

फूलों पर मंडराती तितलियाँ,

और उनके रंगबिरंगे सुन्दर पंख !

बारिश की छोटी बड़ी बूँदें,

और टीन की छत पर

सम लय में उनके गिरने से

उपजा संगीत !

खिड़की के शीशों पर बहती

बूँदों की लकीरें,

और उन लकीरों पर उँगली से लिखे

हमारे तुम्हारे नाम !

नंगे पैरों नर्म मुलायम दूब पर

बहुत हौले-हौले चलना,

और हर कदम के बाद

मुड़ कर देखना

कहीं दूब कुचल तो नहीं गयी !

आसमान में उमड़े श्वेत श्याम  

बादलों की भागमभाग,

और गगनांगन में चल रहे   

इस अनोखे खेल का स्वयं ही

निर्णायक हो जाना !

बारिश के बाद खिली धूप 

और आसमान में छाया सप्तरंगी इन्द्रधनुष

चाँद सूरज के साथ पहरों बतियाना,   

और उनकी रुपहली सुनहरी किरणों को

उँगलियों में रेशम के धागों की तरह

लपेटने की कोशिश में जुटे रहना !

संध्या के सितारे,

पत्तों पर ठहरी ओस की बूँदें,

मंद समीर के सुरभित झोंकों से

मर्मर करते पेड़ों के हर्षित पत्ते, 

रंग बिरंगी उड़ती पतंगें 

झर-झर झरते झरने,

कल-कल बहती नदियाँ,  

हिमाच्छादित पर्वत शिखर,

आसमान में उड़ते परिंदे,

पेड़ों की कोटर से झाँकते नन्हे-नन्हे पंछी 

और सुबह सवेरे उनका सुरीला कलरव

कितना कुछ था जीवन में

जो कभी अकेला होने ही नहीं देता था !

अब भी शायद है यह सब कुछ

यहीं कहीं आस पास

लेकिन शायद मैं ही इन्हें

मह्सूस नहीं कर पाती 

नहीं जानती

यह जीवन से वितृष्णा का प्रतीक है

यह फिर उम्र के साथ अहसास भी

वृद्ध हो चले हैं कि अब

जीने की कोई वजह ही

नज़र नहीं आती !



साधना वैद










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